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रावण का चेहरा

डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी 
उदयपुर (राजस्थान) 
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हर साल की तरह इस साल भी वह रावण का पुतला बना रहा था। विशेष रंगों का प्रयोग कर उसने उस पुतले के चेहरे को जीवंत जैसा कर दिया था। लगभग पूरा बन चुके पुतले को निहारते हुए उसके चेहरे पर हल्की-सी दर्द भरी मुस्कान आ गयी और उसने उस पुतले की बाँह टटोलते हुए कहा,-“इतनी मेहनत से तुझे ज़िन्दा करता हूँ…ताकि दो दिनों बाद तू जल कर खत्म हो जाये! कुछ ही क्षणों की जिंदगी है तेरी…l” कहकर वह मुड़ने ही वाला था कि उसके कान बजने लगे, आवाज़ आई,
“कुछ क्षण ?”
वह एक भारी स्वर था जो उसके कान में गुंजायमान हो रहा था,वह जानता था कि यह स्वर उसके अंदर ही से आ रहा है। वह आँखें मूँद कर यूँ ही खड़ा रहा,ताकि स्वर को ध्यान से सुन सके। फिर वही स्वर गूंजा,-“तू क्या समझता है कि मैं मर जाऊँगा ?”
वह भी मन ही मन बोला,-“हाँ! मरेगा! समय बदल गया है,अब तो कोई अपने बच्चों का नाम भी रावण नहीं रखता।”
उसके अंदर स्वर फिर गूंजा,-“तो क्या हो गया ? रावण नहीं,अब राम नाम वाले सन्यासी के वेश में आते हैं,और सीताओं का हरण करते हैं…नाम राम है लेकिन हैं मुझसे भी गिरे हुए…l”
उसकी बंद आँखें विचलित होने लगीं और हृदय की गति तेज़ हो गयी उसने गहरी श्वांस भरी,उसे कुछ सूझ नहीं रहा थाl स्वर फिर गूंजा,- “भूल गया तू,कोई कारण हो लेकिन मैने सीता को हाथ भी नहीं लगाया था और किसी राम नाम वाले बहरूपिये साधु ने तेरी ही बेटी…l”
“बस…!!” वह कानों पर हाथ रख कर चिल्ला पड़ा। और उसने देखा कि जिस पुतले का जीवंत चेहरा वह बना रहा था,वह चेहरा रावण का नहीं,बल्कि किसी ढोंगी साधु का था।

 परिचय-डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी का कार्यक्षेत्र उदयपुर (राजस्थान) स्थित विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य (कम्प्यूटर विज्ञान)का है। इसी उदयपुर में आप बसे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-लघुकथा,कहानी, कविता,ग़ज़ल,गीत,लेख एवं पत्र है। लघुकथा पर आधारित ‘पड़ाव और पड़ताल’ के खंड २६ में लेखक, अविराम साहित्यिकी,लघुकथा अनवरत (साझा लघुकथा संग्रह),लाल चुटकी(साझा लघुकथा संग्रह), नयी सदी की धमक(साझा लघुकथा संग्रह),अपने-अपने क्षितिज (साझा लघुकथा संग्रह)और हिंदी जगत(न्यूयॉर्क द्वारा प्रकाशित)आपके नाम हैं। ऐसे ही विविध पत्र-पत्रिकाओं सहित कईं ऑनलाइन अंतरतानों पर भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। 

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