आधी बूंद…

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** आधी-अधूरी हमेशा,अनभावन नहीं होतीआज ढह कर बह चुकी,पूरी नहीं;ठहरी हुई आधी बूंद कीबात करते हैं…पेशानी पर पसीने की,उंगलियों में पोंछी-सिमटीआधी बूंद…गालों पर सूख चुकी एक लकीर की,अंतिम…

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एक चमन के फूल हम

डॉ.अशोकपटना(बिहार)********************************** यह सच्चाई है,जीवन की अंगड़ाई हैटूटते-सिमटते हुए,घर-घर की कहानी हैयह आज़ की सिमटी दुनिया में,बढ़ रही कहानी है। परिवार अब परिवार कहां,माँ-बाप से बढ़ रही दूरियाँ यहांजन्म देकर निष्प्राण…

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जल तो जान है

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* राकेश शरद से बहुत दिन से उसके साथ उसके गाँव चलने के लिए कह रहा था, तो इस बार छुट्टियों में शरद तैयार हो ही गया।…

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५ मई को लोकार्पण, पुस्तक परिचर्चा तथा रचना पाठ कार्यक्रम

भोपाल (मप्र)। मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ५ मई को शाम ५ बजे लोकार्पण, पुस्तक परिचर्चा तथा रचना पाठ कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसमें मुख्य अतिथि अनिरुद्ध उमट (लब्ध…

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जहरीले भाषणों की दिन-प्रतिदिन गंभीर होती समस्या

ललित गर्गदिल्ली************************************** कर्नाटक में चुनावों को लेकर नफरती सोच एवं घृणित भाषण का बाजार बहुत गर्म है। राजनीति की सोच ही दूषित एवं घृणित हो गयी है। नियंत्रण और अनुशासन…

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फिर वही शाम

श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* न जाने क्यों बार-बार आ जाती है,हमसे मिलने 'फिर वही शाम'क्यों बीते पल को याद दिलाती है_रोज-रोज आकर वही शाम। सहने की घड़ी अब बन्द हो…

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उफ़…ये गर्मी!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* उफ़…ये गर्मी त्रासदी, जेठ दुपहरी ताप।फिर भी पत्थर तोड़ते, मज़बूरी अभिशाप॥ शीतल मंद समीर नित, कहीं धूप कहँ छाँव।उमर-घुमड़ बरसे घटा, पुन: तपिश उद्भाव॥…

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महाकवि डॉ. कुॅंअर बेचैन की पुण्य तिथि निमित्त प्रविष्टि आमंत्रित

मुम्बई (महाराष्ट्र) अखिल भारतीय अनुबन्ध फाउंडेशन (मुम्बई) ने सम्मान समारोह (वर्ष- २०२३) के लिए प्रविष्टि आमंत्रित की है। यह प्रविष्टि ३ वर्ग में ३० मई २०२३ तक चाही गई है।फाउंडेशन…

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ओ मेरे हमदम

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* वीरान जंगल,अनजाने रास्तेलंबा सफर और,गीत सूफियानागर तुम न होते तोकैसे हो मौसम सुहाना। ये सुहानी राहें,जहाँ मिले थे हमआज भी बाँहें फैलाएआलिंगन करे, कहे थम,तेरे गीतों…

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स्वाधीन चेतना से होता है विवेक का निर्माण

वाराणसी (उप्र)। लालच और दमन अभिव्यक्ति के लिये सबसे बड़े खतरे हैं। साहित्य की महानता की ज़मीन इससे तय होती है कि उसके विवेक का निर्माण स्वाधीन चेतना से हुआ…

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