गंतव्य की ओर

तारा प्रजापत ‘प्रीत’रातानाड़ा(राजस्थान) ***************************************** चल रही हूँनिरन्तर,चाहे अवरुद्ध होरास्ते जीवन के,कभी लड़ती हूँवक़्त से,कभी मन बच्चे कोफुसलाती हूँ,थक जाती हूँपर हारती नहीं। कुछ पलईश्वर के,चिंतन की गोद मेंसिर रख कर,सुस्ता लेती…

0 Comments

अकादमी एवं महाविद्यालय ने कराया ‘मातृभाषा महोत्सव’

दिल्ली। 'अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' के अवसर पर हिंदुस्तानी भाषा अकादमी एवं किरोड़ीमल महाविद्यालय की 'भारतीय भाषा समिति' के संयुक्त तत्वाधान में 'मातृभाषा महोत्सव' का आयोजन किया गया। ४ सत्रों में…

0 Comments

धड़कन

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’अलवर(राजस्थान)*************************************** हाय!दिल की धड़कन,बढ़ने लगी हैप्रिय की कमी,अब खलने लगी है। कैसे होगा,जीवन का गुजारातन्हाई भी,मचलने लगी है। यादों के सहारे,अब जी न सकूंगाहाय! विरह वेदना,बढ़ने लगी है।…

0 Comments

सावन सोमवार

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** "माँ,माँ..." १८ वर्षीया बेटी रिया दौड़ती हुई आई और बोली- "ये श्रावण मास के सोमवार का इतना महत्व क्यों है ? मैंने देखा कि भीड़ की भीड़…

0 Comments

‘बुलाsssss’

फिजी यात्रा:विश्व हिंदी सम्मेलन... भाग-२.. फिजी की लगभग २० घंटे की यात्रा में मलेशिया के कुआलालमपुर में एक विराम हुआ। उस २ घंटे के विराम ने आधी यात्रा की थकान…

0 Comments

इक अवसर बस मुझको दे दो…

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** हृदय यंत्र सँगीत रखता हूँ,गा भी और बजा सकता हूँकुछ अक्षर की सीढ़ी दे दो,चाँद तक मैं जा सकता हूँलिख सकता हूँ गीत हजारों,स्वर प्रियवर बस मुझको…

0 Comments

होली का हुड़दंग

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* रंगो का है ये अनोखा मेल,बचपन का है ये सुंदर खेल। देखकर सभी रह जाते हैं दंग,ऐसा होता है होली का हुड़दंग। छल-कपट से…

0 Comments

पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के लिए आया दल

आगरा (उप्र)। कजाखस्तान से २ सदस्यीय दल १० दिन के पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के लिए केंद्रीय हिंदी संस्थान आया हुआ है। संस्थान प्रमुख बीना सिंह ने बताया कि इसमें डॉ. दरिगा…

0 Comments

मानवता सबसे बड़ा धर्म

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है।मानवता है धर्म बड़ा,मिलता जिससे यशगान है॥ जाति-पाँति में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं,मानव-मानव एक बराबर,…

0 Comments

बसंती मनोरम

सच्चिदानंद किरणभागलपुर (बिहार)**************************************** द्रुमदल शोभित बसंती,हवा में डोल-डोल कुछबोल रही अपने-आपसे,कुछ खोल-खोल। अमरई मंजरी मोहक,सुगंध में बखुलाईनवोलित‌ कोमल पत्ते,परंग‌ और तो औरमादक महुअन की खिल्ली,अति मधुरम फाग कीफगुनाहट से मदमाती,शुभीश…

0 Comments