सखी रे, सावन पावन लागे
कवि योगेन्द्र पांडेयदेवरिया (उत्तरप्रदेश)***************************************** पावन सावन-मन का आँगन... सूखे ताल-तलैया भर गए,पशु-पक्षी प्यासे थे, तर गएरिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा,मन चातक हरसावन लागेसखी रे, सावन पावन लागे। धरती नव-यौवन को पाई,हरी चुनरिया…