आत्मजा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* 'आत्मजा' खंडकाव्य से अध्याय-१८.......... हुआ द्रवित मन,आँसू छलके, भाव विह्वल पितु लगे सोचने बेटी को भी समझ न पाये, लगे स्वयं को सहज कोसने। शिक्षा देकर…