अंजुरी भर

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** भावनाओं ने कहा तो अंजुरी भर गीत ले कर आ रहे हम। विघ्न भी हैं सघन राह में निशिचर खड़े आघात को तम। संगठित निशिचर…

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गीत को जीते रहे

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** आचमन की तरह जो पीते रहे हम,ज़िन्दगी भर गीत को जीते रहे हम। पालने से गीत का संग,मातु के वात्सल्य में,माँ क्षीर संग पीते रहे…

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भय दूर करो

अविनाश तिवारी ‘अवि’ अमोरा(छत्तीसगढ़) ************************************************************************ जब भय का हो आवरण, सड़को पे दुशासन दिखते हैंl तब लीलाधर की तर्जनी से, चक्र सुदर्शन निकलते हैं। आज भय में बेटी-माताएं, `निर्भया` भयातुर…

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आप बताएं-आप क्या करते…?

डॉ.हेमलता तिवारी भोपाल(मध्य प्रदेश) ********************************************************** हैदराबाद घटना-विशेष रचना.......... `दिशा` ने पूछा-आप बताएं - आपके घर कोई जबरदस्ती घुस आए, आपको कैसा लगेगा ? आप बताएं...l बिना मर्जी के आपके शयन…

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खुद को जलना है

दिप्तेश तिवारी दिप रेवा (मध्यप्रदेश) **************************************************** सारी उम्र बाती का लड़ना रहा उजियारे से, सायद डरती थी वो पागल उस अंधियारे से। मैंने कहा-तू तो सूरज का अभिमानी टीका है, अग्नि…

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चाहिए है समझना बराबर

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचनाशिल्प:वज़्न-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-१२२-फऊलुन×८) बड़ी बात ये है कि फुटपाथ में जो उन्हें चाहिए है समझना बराबर। तक़ाजा यही हो न उनसे हिक़ारत लगाएं भी दिल से ज़मीं…

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अनुगूँज

डॉ.हेमलता तिवारी भोपाल(मध्य प्रदेश) ********************************************************** एक बीते हुऐ अतीत का समापन, कहीं गुदगुदाता है मन तो कहीं टीसता-सा लगता है, वो उमंग वो चाहत... न जाने क्यों उधर से ही…

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किनारा नदी का

डॉ.हेमलता तिवारी भोपाल(मध्य प्रदेश) ********************************************************** आदमी का मन‐ कटा-फटा किनारा है,नदी का, तभी खा जाता है जख्म‐ हर किसी के दंभी काँटों से‐ इसकी गहराई में कहां हैं सीपी,घोंघे भावनाओं…

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ज़िन्दगी गुनगुनाने लगी

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** नाम खुद की हथेली पर उनका लिखा,तब से बेचैन वो नींद जाने लगी। उनसे पूछा नहीं पर पता चल गया,ज़िन्दगी नेह में गुनगुनाने लगी। ज़ादुई…

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बेसबब ग़ुस्ताख़ियां

प्रदीपमणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल(मध्यप्रदेश) **************************************************************************** (रचना शिल्प: वज़्न-२१२२ २१२२ २१२२ २१२,अर्कान-फाइलातुन×३-फाइलुन) बेसबब है की नहीं ग़ुस्ताख़ियां अक्सर सुनो। जाम बिन आई नहीं मदहोशियां अक्सर सुनो। ज़िल्लतों के बाद हासिल ना…

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