अंतस दियरा बार

रेखा बोरा लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ************************************************************* अंतस दियरा बार रे मानुष, अंतस दियरा बार। तेरा-मेरा क्यों सोचे है, जाना है हाथ पसार। रे मानुष...॥ जग है ये काजल की कोठी,…

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बिछुड़े लम्हें

तारा प्रजापत ‘प्रीत’ रातानाड़ा(राजस्थान)  ************************************************* बिछुड़ गए कुछ लम्हें मुझसे, जाने क्यों मालूम नहीं ? पाया था उन लम्हों में मैंने, खुशियों का अनमोल खज़ाना। क्या होता है ? प्रेम…

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मेरे अपने ऐसे हों…

डॉ. वसुधा कामत बैलहोंगल(कर्नाटक) ******************************************************************* मेरे अपने ऐसे हों,श्रीराम कृष्ण जैसे, जो मैं माँगू वह मुझे दे दे... जो मैं चाहूँ वो मैं पाऊँ। मेरे अपने ऐसे हों,सूर्य-चंद्र जैसे, मेरे…

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प्रकृति और हम

अनिता मंदिलवार  ‘सपना’ अंबिकापुर(छत्तीसगढ़) ************************************************** प्रकृति क्या है ? देखा जाए तो प्रकृति हमारे आसपास ही है। हमारे इर्द-गिर्द हरे पेड़-पौधे,सरसराती हवाएँ,पौधों पर जीवन व्यतीत कर रहे जीव-जन्तु, कलकल बहती…

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‘जलेस’ के मासिक रचना पाठ में कवियित्री पुष्पा रानी गर्ग ने सुनाई उत्कृष्ट कविताएं

इन्दौर(मप्र)। जनवादी लेखक संघ मासिक के रचना पाठ-७६ में वरिष्ठ कवियित्री पुष्पा रानी गर्ग ने कविता पाठ किया। उन्होंने दिवस शिशिर का,सुनियोजित,ईसा अभी भी जिंदा है,पथराई-सी देह,औरत गर्भवती है,काम पर…

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गंदगी का करना है अंत

सहज सभरवाल जम्मू( कश्मीर) ******************************************************** लो आ गया नया ज़माना, स्वच्छ भारत बन गया है एक बहाना। क्या भारत की स्वच्छता का इरादा, टूट रहा है यह स्वच्छ भारत का…

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तुसी ही रब हो…

कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना ‘गिरीश’ भोपाल(मध्यप्रदेश) *********************************************************************************** चिकित्सक के जीवन में हर दिन का अपना महत्व होता है,पर उसमें भी कुछ दिन यादगार बन जाते हैं। ऐसा ही एक दिन…

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यादें

बोधन राम निषाद ‘राज’  कबीरधाम (छत्तीसगढ़) ******************************************************************** यादें तड़पाती मुझे,चैन नहीं दिन रात। हर पल आती याद है,उससे की जो बात॥ उससे की जो बात,हमें जब याद सताती। मिलने को…

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बसंत की सुगंध

शशांक मिश्र ‘भारती’ शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) ************************************************************************************ बसन्त की पाकर के सुगन्ध अलसी देखो लगी अलसाने, फूली सरसों हाथ पीले कर लगे खेत-खलिहान महकने। चना मटर फलियों से लदगद प्रसन्न कृषक लगे…

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फूल गुलशन से बिछड़ के भी किधर जाएगा

सुश्री अंजुमन मंसूरी ‘आरज़ू’ छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ********************************************************************  बागवाँ,गर न तवज्जोह की,मर जाएगा, फूल गुलशन से बिछड़ के भी किधर जाएगा। इस तरह रोज़ बहेगी जो हवा नफ़रत की, ये…

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